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रिपोर्ट:
भारत सरकार ने निर्यातकों को एक सख्त चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि वे तीसरे देशों से आने वाले सामान को भारत के रास्ते अमेरिका न भेजें। यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध गहराता जा रहा है और उसका असर वैश्विक व्यापार पर साफ दिख रहा है।
वाणिज्य मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया कि भारत इस समय अमेरिका के साथ व्यापार समझौतों को लेकर गंभीर है और कोई भी गलत कदम भारत-अमेरिका व्यापार रिश्तों को नुकसान पहुंचा सकता है।
भारत पर भड़क सकता है अमेरिका
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अध्यक्षता में हुई बैठक में सरकार ने भरोसा दिलाया कि डंपिंग को रोकने के लिए आयातों की कड़ी निगरानी की जाएगी। उन्होंने निर्यातकों से कहा कि वे चीन जैसे देशों से आने वाले माल को भारत के जरिये अमेरिका में न भेजें, क्योंकि इससे अमेरिका नाराज हो सकता है और भारत पर जवाबी टैरिफ लगाए जा सकते हैं।
अमेरिका ने हाल ही में चीन से आने वाले उत्पादों पर 125% तक का शुल्क लगा दिया है, जिससे चीनी निर्यातक वैकल्पिक मार्ग ढूंढ रहे हैं।
वैश्विक व्यापार संकट के बीच भारत की रणनीति

पीयूष गोयल ने निर्यातकों से कहा कि वे घबराएं नहीं बल्कि नए अवसरों पर ध्यान दें। भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA) का पहला चरण सितंबर-अक्टूबर तक पूरा करने की योजना है। इसका लक्ष्य 191 अरब डॉलर के व्यापार को 500 अरब डॉलर तक ले जाना है।
सॉफ्ट लोन और गुणवत्ता नियंत्रण में राहत
सरकार सॉफ्ट लोन देने के विकल्प पर विचार कर रही है ताकि निर्यातकों की वित्तीय मुश्किलें कम हो सकें। साथ ही यूरोपीय संघ, यूके और अमेरिका जैसे देशों से आने वाले आयात पर गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों में ढील देने की बात भी कही गई है, खासकर उन देशों के लिए जहां से गुणवत्ता की शिकायतें कम रही हैं।
क्यों दी गई यह चेतावनी?
भारत पर 26% का टैरिफ पहले ही अमेरिका द्वारा लगाया जा चुका है। यदि भारतीय निर्यातक तीसरे देशों के माल को अमेरिका भेजने में लगे रहे, तो यह अमेरिका की नजर में संदिग्ध बन सकता है। इससे भारत के खिलाफ और कड़े प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
भारत के लिए अवसर
मंत्री गोयल ने कहा कि आज का समय भारत के लिए अवसरों से भरा है। वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की भूमिका बढ़ सकती है, जिससे रोजगार और निर्माण को बल मिलेगा।
सरकार निर्यात संवर्धन मिशन (EPM) के तहत एक व्यापक योजना पर भी काम कर रही है, जिससे भारतीय उत्पादक वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकें।
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